Durgesh Nandini

प्रस्तावना 

श्री बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय  की रचना ‘दुर्गेश नन्दिनी’ बांग्ला ऐतिहासिक उपन्यास है जिसे सन् 1865 में लिखा गया था जब वो केवल 26 वर्ष के थे।​​श्री बंकिम चंद्र को मंदारन की एक लोकप्रिय कथा के बारे में बताया, जिसे उन्होंने बिष्णुपुर - आरामबाग क्षेत्र से एकत्र किया था। किंवदन्ती के अनुसार, पठानों ने स्थानीय सामन्त  के क़िले पर हमला किया और उन्हें, उनकी पत्नी और बेटी को क़ैदी के रूप में उड़ीसा ले गए । जगत् सिंह जो पठानों से युद्ध करने के लिए आए थे, वो भी क़ैद कर लिए गए । बंकिम चंद्र ने कहानी 19 वर्ष की आयु में सुनी और कुछ वर्षों के बाद उन्होंने ‘दुर्गेश नन्दिनी’ लिखी​​।

इस कहानी की कई संस्करण विभिन्न भाषाओं में आ चुके हैं। इस प्रस्तुति में इस अद्भुत त्रिकोणीय प्रेम कहानी को संक्षिप्त और सरल हिन्दी  में प्रस्तुत करने की कोशिश की  गई है


लेखक 

डॉ महीप सिंह गौर पेशे से एक कुशल सुपर स्पेशलिस्ट न्यूरो सर्जन हैं और भारत में Gamma Knife Radiosurgery के प्रथम अन्वेषक हैं। वह विमहंस अस्पताल [Vimhans  Hospital], नई दिल्ली में रेडियो सर्जरी विभाग के प्रमुख हैं।

उन्होंने गांधी मेडिकल कॉलेज, भोपाल, मध्यप्रदेश से स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने अपनी एम॰सी॰एच॰ न्यूरो सर्जरी [M.Ch. Neurosurgery] एस॰एम॰एस॰ मेडिकल कॉलेज, जयपुर (राजस्थान विश्वविद्यालय) से की और उसके बाद डॉ. तत्सुओ हिराई और डॉ. तकीजावा के मार्गदर्शन में Fujieda, Japan से Gamma Knife Stereotactic Radiosurgery  में फ़ैलोशिप की। 25 वर्षों के अनुभव के साथ आज वे भारत के सबसे अनुभवी गामा नाइफ सर्जन हैं।

यद्यपि उनकी हिंदी साहित्य में गहरी रुचि थी, पर रोगियों के प्रति अपने समर्पण भाव के कारण वे अपनी लेखन प्रतिभा को निखारने का अवसर नहीं निकाल पाए। COVID महामारी के दौरान, उन्होंने लिखने के जुनून को फिर से जाग्रत किया और कई कहानियाँ और एक उपन्यास लिखा। उन्होंने वर्ष 2022 में अपना खुद का प्रकाशन संस्थान, टोयो झोनर पब्लिकेशन शुरू किया, जो युवा और शौकिया लेखकों को प्रोत्साहित करता है और खोए हुए क्लासिक्स, विशेष रूप से बच्चों के लिए साहित्य को पुनर्जीवित करने का इरादा रखता है।

डॉ महीप सिंह गौर

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